ऐ ख़ुदा तेरी
दुनिया में इतनी मुसीबत क्यों है ।
कहीं दौलत है तो कहीं इतनी ग़ुरबत क्यों है ।
हो गई रंजिशें तेरी इबादतगाहों की तामीर पे,
तेरे ही बन्दों में तेरी इतनी मुख़ालफ़त क्यों है ।
हो जाए क़त्ल रोज़ ही सच का सरेआम यहाँ,
झूट और फ़रेब की फ़िर इतनी क़ीमत क्यों है ।
कहीं दौलत है तो कहीं इतनी ग़ुरबत क्यों है ।
हो गई रंजिशें तेरी इबादतगाहों की तामीर पे,
तेरे ही बन्दों में तेरी इतनी मुख़ालफ़त क्यों है ।
हो जाए क़त्ल रोज़ ही सच का सरेआम यहाँ,
झूट और फ़रेब की फ़िर इतनी क़ीमत क्यों है ।
ऊँच-नीच, ज़ात-पात में बँट गया इंसान यहाँ,
बँट गयी ज़मीन, बँट गए इंसान सारे यहाँ
हमसायों में फैली हुई इतनी
नफ़रत क्यों है ।
तू ही कहता है मिलूँगा हर ज़र्रे में ढूँढ ले मुझको,
फ़िर तुझे पाने के लिए इतनी इबादत क्यों है ।
तू ही कहता है मिलूँगा हर ज़र्रे में ढूँढ ले मुझको,
फ़िर तुझे पाने के लिए इतनी इबादत क्यों है ।
हरेक बात पे
जता के फ़र्क़, होगा क्या
हासिल हमें,
अमन की बात पे ऐ लोगों इतनी मुनाक़ज़त क्यों है । 'तन्हा' आया हूँ तन्हा ही लौट जाना है मुझे,
आज दिल में जाग रही इतनी हसरत क्यों है ।